पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के बीच उसके अलग-अलग विकल्प तलाशने का काम जारी हैं। कुछ लोग तो पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों की जगह इलेक्ट्रिक इंजन वाली कार को विकल्प के तौर पर चुन रहे हैं। इन सबके बीच एक और इंजन, फ्लेक्स इंजन यानि फ्लेक्सिबल इंजन Flex fuel engine वाली कार की बात हो रही है। सरकार अगले कुछ दिनों में फ्लेक्स फ्यूल इंजन पर बड़ा फैसला लेने वाली है। इस इंजन को ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के लिए अनिवार्य बनाया जाएगा।
एक कार्यक्रम के दौरान, केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने कहा, “मैं परिवहन मंत्री हूं, मैं इंडस्ट्री के लिए जल्द ही एक आदेश जारी करने जा रहा हूं कि केवल पेट्रोल इंजन नहीं होंगे बल्कि फ्लेक्स-फ्यूल इंजन भी होंगे। इसमें लोगों के पास विकल्प होगा कि वे 100 प्रतिशत कच्चे तेल का उपयोग करें या फिर 100 प्रतिशत एथेनॉल का इस्तेमाल करे।”
प्रति लीटर 30-35 रुपये की कर पाएंगे बचत
भारत में अभी पेट्रोल की कीमत 100 रुपये प्रति लीटर से अधिक है। वहीं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के अनुसार, इस समय एथेनॉल की कीमत 60-62 रुपये प्रति लीटर है। इसके उपयोग से लोग प्रति लीटर 30-35 रुपये की बचत कर पाएंगे। एक ओर जहां पैसों की बचत होगी वहीं दूसरी ओर इससे प्रदूषण फैलाने वाले जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता भी घटेगी और देश में प्रदूषण का स्तर कम करने में मदद मिलेगी।
क्या है फ्लेक्स इंजन?
इस इंजन को खास तरह से डिजाइन किया जाता है। इसमें दो तरह के फ्यूल डाले जा सकते हैं। ये एक नॉर्मल इंटर्नल कम्बशन इंजन (आईइसी) जैसा ही होता है, लेकिन यह एक या एक से ज्यादा तरह के फ्यूल से चलने में सक्षम होता है। फ्लेक्स इंजन में मिक्स फ्यूल यानि मिश्रित ईंधन का भी इस्तेमाल किया जा सकता है, आमतौर पर गैसोलीन प्लस एथेनॉल या मेथनॉल ईंधन का इस्तेमाल किया जा सकता है। आसान शब्दों में कहें तो आप इसमें दो तरह के फ्यूल डाल सकते हैं और फिर ये इंजन अपने हिसाब से इसे काम में ले लेता है।
कैसे करता है फ्लेक्स इंजन काम
इस इंजन में एक तरह के ईंधन मिश्रण सेंसर यानि फ्यूल ब्लेंडर सेंसर का उपयोग होता है, जो मिश्रण में ईंधन की मात्रा के अनुसार खुद को एड्जेस्ट कर लेता है। जब आप गाड़ी चलाना शुरू करते हैं तो ये सेंसर एथेनॉल / मेथनॉल/ गैसोलीन का अनुपात, या फ्यूल की अल्कोहल कंसंट्रेशन को पढ़ता है। इसके बाद यह इलेक्ट्रॉनिक कंट्रोल मॉड्यूल को एक संकेत भेजता है और ये कंट्रोल मॉड्यूल तब अलग-अलग फ्यूल की डिलीवरी को कंट्रोल करता है।
यह आम गाड़ियों से किस तरह अलग है?
अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह दूसरी गाड़ियों से किस तरह अलग है? ऐसा तो अभी भी कई गाड़ियों में है, जिसमें आप एक बार में सीएनजी या पेट्रोल से गाड़ी चला सकते हैं, लेकिन फ्लेक्स इंजन, बाय-फ्यूल इंजन वाली गाड़ियों से काफी अलग होते हैं। बाय-फ्यूल इंजन में अलग-अलग टैंक होते हैं, जबकि फ्लेक्स फ्यूल इंजन में आप एक ही टैंक में कई तरह के फ्यूल डाल सकते हैं। यह इंजन खास तरीके से डिजाइन किए जाते हैं।
कौन-कौन से फ्यूल का कर सकते हैं इस्तेमाल?
फ्लेक्स इंजन वाली कार में एथेनॉल के साथ गैसोलीन का इस्तेमाल हो सकता है और मेथनॉल के साथ गैसोलीन का इस्तेमाल भी हो सकता है। इसमें इंजन अपने हिसाब से इसे डिजाइन कर लेता है। वर्तमान में ज्यादातर इसमें एथेनॉल का इस्तेमाल होता है। बाहर के देश जैसे, ब्राजील, अमेरिका, कनाडा और यूरोप में ऐसी कार काफी चलती हैं।
भारत कर सकता है हर साल 30 हजार करोड़ की बचत
भारत इस वक्त पेट्रोल-डीजल और पेट्रोलियम उत्पादों के आयात पर 8 लाख करोड़ रुपये खर्च कर रहा है, यह अगले पांच साल में 15 लाख करोड़ तक जा सकती है। हाल ही में रिलीज हुई नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत अपनी पेट्रोलियम खपत का लगभग 85 प्रतिशत आयात करता है। वित्त वर्ष 2020-21 भारत ने 185 एमटी पेट्रोलियम का आयात किया जिसके लिए 55 अरब डॉलर का भुगतान करना पड़ा। बीस प्रतिशत एथेनॉल मिश्रण प्रोग्राम से भारत हर साल 4 अरब डॉलर यानी 30,000 करोड़ रुपये तक की बचत कर सकता है। इससे आयात पर निर्भरता तो कम होगी ही साथ ही ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को प्राप्त करने में भी मदद मिलेगी।
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